मिल गयी बरसों पुरानी बड़े जतन से रखी
गुलाब की सुर्ख पंखुरियां
सूख कर भी यादों की हरियाली
रखी थी बरक़रार
रंग अब भी था सुर्ख लाल
हरियाली में धुंधला सा चेहरा
नादानी वाली अनकही कहानी कहती
वो प्रेम का प्रतीक लाल गुलाब
ज़माने से छुपा कर दिया था उसने
मैंने भी सबसे छुपा सहेजा
किताब के पन्नों बीच
उस उम्र का प्यार छुप छुप देखना
सपनों के राजकुमार का चेहरा
उसके चेहरे से मेल खाता
दीवानगी उसकी अहसास जगाता
प्रथम प्रेम की परिभाषा समझाता
आ सामने वो गुलाब आज
गुदगुदी दिला मन को भिंगोता गया
बारिश सी ठंढक, यादों की हिलोरे देता गया
बड़ा बेसकीमती था वो सुर्ख गुलाब
Author sid
22-Jan-2021 08:04 PM
👍👍👍
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Author Pawan saxena
22-Jan-2021 02:06 PM
Good
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Nisha
22-Jan-2021 01:41 PM
👍👍
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